माउंट एवरेस्ट: पृथ्वी की सबसे ऊंची चोटी

माउंट एवरेस्ट: पृथ्वी की सबसे ऊंची चोटी

माउंट एवरेस्ट, जिसे नेपाल में सागरमाथा और तिब्बत में चोमोलूंगमा के नाम से जाना जाता है, पृथ्वी की सबसे ऊंची चोटी है। यह हिमालय पर्वत श्रृंखला में स्थित है और इसकी ऊंचाई 8,848.86 मीटर (29,031.7 फिट) है। एवरेस्ट न केवल एक भौगोलिक चमत्कार है, बल्कि यह एक मानवीय साहस, संघर्ष और जिज्ञासा प्रतीक है। इस लेख में हम माउंट एवरेस्ट के इतिहास, भूगोल, पर्यावरण और इसके अवरोहण के इतिहास के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। 

माउंट एवरेस्ट का इतिहास 

माउंट एवरेस्ट का नामकरण सर जार्ज एवरेस्ट के नाम पर किया गया था, जो 19वीं शताब्दी में भरता सर्वेयर जरनल थे। हालांकि, स्थानीय लोगों के लिए यही छोटी सदियों से पवित्र रही है। नेपाल में इसे सागरमाथा कहा जाता है, इसका अर्थ है “आकाश का माथा”, जबकि तिब्बत में से चोमोलूंगमा कहते हैं, जिसका अर्थ हैं “पर्वत की रानी”

एवरेस्ट की ऊंचाई पहली बार में ग्रेट ट्रिग्रोमेट्रीक के सर्वे के दौरान मापी गई थी। इस सर्वेक्षण के दौरान भारतीय गणितज्ञ सिकदर ने इसकी ऊंचाई की गणना की और इसे दुनिया की सबसे ऊंची चोटी घोषित किया।

माउंट एवरेस्ट का भोगल

माउंट एवरेस्ट हमारे पर्वत श्रृंखला में स्थित है, जो नेपाल और तिब्बत (चीन) की सीमा पर स्थित है। यह महालंगुर हिमाल उपश्रृंखला का हिस्सा है और इसके आसपास कई ऊंची चोटियों भी हैं, जैसे ,????

एवरेस्ट की ऊंचाई समुद्र तल से 8848.86 मीटर है, लेकिन इसकी ऊंचाई में परिवर्तन हो सकता है क्योंकि टेक्निकल प्लेटों की गति के कारण यह हर साल कुछ मिलीमीटर ऊपर होता है। इसके अलावा, हिमनंदो और बर्फ की मोटाई में भी परिवर्तन भी इसकी ऊंचाई को प्रभावित कर सकता है। 

माउंट एवरेस्ट का पर्यावरण 

माउंट एवरेस्ट का पर्यावरण अत्यंत कठोर और चुनौतीपूर्ण है। यहां का तापमान -60 डिग्री सेंटीग्रेड तक गिर सकता है और ऑक्सीजन का स्तर समुद्र तल की तुलना में लगभग एक तिहाई होता है। इसके कारण यहां जीवन बहुत ही दुर्लभ है, लेकिन कुछ प्रजातियां जैसे हिम तेंदुआ, हिमालयन तहर और कुछ पक्षी यहां पाए जाते हैं।

एवरेस्ट पर बर्फ और हिमनंदो का विशाल भंडारा है, जो दुनिया के सबसे मीठे पानी के स्रोतों में से एक है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण इन हिमनदों के पिघलने की दर बढ़ रही है, जो न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक है, बल्कि इससे नदियों के प्रवाह और जलवायु पर भी प्रभाव पड़ सकता है। 

माउंट एवरेस्ट पर आरोहण का इतिहास

माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई का इतिहास बहुत ही रोमांचक और प्रेरणादायक है। पहली बार एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रयास 1921 में ब्रिटिश अभियान दल ने किया था, लेकिन यह असफल रहा। इसके बाद कई और प्रयास हुए, लेकिन सफलता 29 मई 1953 को मिली, जब न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और नेपाल के शेरपा तेनजिंग नोर्गे बने पहली बार एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखा।

तब से लेकर अब तक हजारों लोग एवरेस्ट पर चढ़ चुके हैं, लेकिन यह सफर आसान नहीं है। एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होना चाहिए। आरोहियों को ऑक्सीजन की कमी, ठंड, तूफान और हिमस्खलन जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 

एवरेस्ट पर चढ़ाई के मार्ग 

माउंट एवरेस्ट

एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए मुख्य रूप से दो मार्ग हैं: दक्षिण-पूर्वी रीच मार्ग (नेपाल से) और उत्तर-पूर्वी रीज मार्ग (तिब्बत से)। दक्षिण-पूर्वी मार्ग को अधिक सुरक्षित और आसान माना जाता है,और यही कारण है कि अधिकांश आरोही इसी मार्ग पर का चयन करते हैं।

दक्षिणी-पूर्वी रीज मार्ग: यह मार्ग नेपाल के खुम्बू क्षेत्र से शुरू होता है। आरोही पहले लुक्का हवाई अड्डे पर पहुंचते हैं, फिर नामचे बाजार और तेनजिंग हिलेरी एयरपोर्ट से होते हुए बेस कैंप तक पहुंचाते हैं। बेस कैंप से चढ़ाई शुरू होती है और आरोही कई कैंपस से गुजरते हुए चोटी तक पहुंचाते हैं।

उत्तर-पूर्वी रिच मार्ग: यह मार्ग तिब्बत से शुरू होता है और इससे अधिक कठिन माना जाता है। इस मार्ग पर हवा की गति अधिक होती है और तापमान भी कम होता है हालांकि, यह मार्ग कम भीड़भाड़ वाला हैं और कुछ आरोही इसे चुनते हैं। 

एवरेस्ट पर चढ़ने की चुनौतियां 

एवरेस्ट पर चढ़ना कोई आसान काम नहीं है। आरोहियों को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें से कुछ प्रमुख है:

ऑक्सीजन की कमी: एवरेस्ट की ऊंचाई पर ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम होता है, जिसके कारण आरोहियों को सांस लेने में दिक्कत होती है। इस स्थिति में हाइपोक्सिया कहा जाता है और यह जानलेवा भी हो सकता है।

ठंडा और तूफान: एवरेस्ट पर तापमान -60 डिग्री सेंटीग्रेड सेल्सियस तक गिर सकता है और तूफानी हवा चल सकती है। ये परिस्थितियों आरोहियों के लिए बहुत ही खतरनाक हो सकती हैं।

हिमस्खलन: एवरेस्ट पर हिमस्खलन एक आम घटना है और यह आरोहियों के लिए बहुत बड़ा खतरा हो सकता है। हिमस्खलन के कारण कई आरोहियों की जान जा चुकी है।

शारीरिक और मानसिक थकान: एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए आरोहियों को कई दिनों तक कठिन परिश्रम करना पड़ता है। इसके कारण शारीरिक और मानसिक थकान हो सकती है जो आरोहियों के लिए एक बड़ी चुनौती है। 

एवरेस्ट पर चढ़ने वाले प्रसिद्ध आरोही 

एवरेस्ट पर चढ़ने वाले कई प्रसिद्ध आरोहियों ने इसे इतिहास रचा है। इनमें से कुछ प्रमुख नाम है:

एडमंड हिलेरी होते तेनजिंग नोर्गे: 29 मई 1953 को इन दोनों ने पहली बार एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखा है। यह एक ऐतिहासिक घटना थी जिसमें दुनिया भर के में सुर्खियां बटोरी।

जुनको तabei: 1975 में तabei पहली महिला बनी जिन्होंने एवरेस्ट पर चढ़ाई की। उन्होंने यह साबित कर दिया कि महिलाएं किसी से कम नहीं है।

राइनहोल्ड रयान मेंस्रर: 1980 में राइन होल्ड मेंस्रर पहले व्यक्ति बने जिन्होंने बिना ऑक्सीजन सिलेंडर के एवरेस्ट पर चढ़ाई की। यह एक अद्भुत उपलब्धि थी।

अप्पा शेरपा: अपा शेरपा ने 21 बार एवरेस्ट पर चढ़ाई की है, जो एक विश्व रिकॉर्ड है। जिन्होंने यह साबित कर दिया कि इस शेरपा लोगों का साहस और दृढ़ता अद्वितीय है। 

एवरेस्ट पर चढ़ाई का भविष्य 

एवरेस्ट पर चढ़ाई का भविष्य कई चुनौतियों से भरा हुआ है। जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदो के पिघलने से पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ चल रही हैं। इसके अलावा, एवरेस्ट पर चढ़ने वाले आरोहियों की संख्या में वृद्धि के कारण भीड़भाड़ और प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई है।

हाल वर्षों, में एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए परमिट की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसके कारण बेस कैंप और चढ़ाई के मार्गों पर भीड़ बढ़ गई है। इसके कारण आरोहियों को लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है और उनके लिए खतरा बढ़ जाता है। इस समस्या को हल करने के लिए नेपाल सरकार ने परमिट की संख्या को सीमित करने का फैसला किया है।

इसके अलावा, एवरेस्ट पर चढ़ने वाले आरोहियों को पर्यावरण के प्रति जागरूक होना चाहिए और कचरे को नष्ट करने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए। कई संगठनों ने एवरेस्ट पर सफाई अभियान चलाए हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष 

माउंट एवरेस्ट न केवल पृथ्वी की सबसे ऊंची चोटी है, बल्कि यह मानवी साहस और दृढ़ता का प्रतीक भी है। इसकी ऊंचाई और कठिन परिस्थितियों के बावजूद हजार लोगों ने इसे फतह करने का सपना देखा और कईयों ने इसे पूरा भी किया हैं। हालांकि, एवरेस्ट पर चढ़ना कोई आसान कम नहीं हैं और इसमें कई खतरे शामिल हैं। 

एवरेस्ट की सुंदरता और महत्व को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम पर्यावरण के प्रति जागरूक हो और इनके संरक्षण के लिए कदम उठाए। एवरेस्ट न केवल एक पर्वत है, बल्कि, यह हमारे ग्रह की एक अनमोल धरोहर है, जिसे हमें भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखना चाहिए।

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