नालंदा विश्वविद्यालय
नालंदा विश्वविद्यालय भारतीय सभ्यता और संस्कृति की महान उपलब्धियां में से एक है। यह विश्व का सबसे प्राचीन और प्रशिक्षित विश्वविद्यालय था, जिसे न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में शिक्षा और ज्ञान के केंद्र के रूप में जाना जाता था। इसकी स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासनकाल में हुई थी और यह लगभग 800 वर्षों तक शिक्षा का केंद्र बना रहा। इस विश्वविद्यालय का महत्व केवल भारत तक सीमित नहीं था: यह चीन,तिब्बत,कोरिया,जापान और अन्य देशों के विद्वानों के लिए भी आकर्षण का केंद्र था।
स्थापना और इतिहास
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नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5शताब्दी के आसपास गुप्त साम्राज्य के महान सम्राट कुमार गुप्त प्रथम ने की थी। नालंदा “नालम”(ज्ञान) और “दा” देना से बना है,उसका अर्थ है “ज्ञान देने वाला”। नालंदा विश्वविद्यालय का उल्लेख चीनी यात्रियो ने अपनी यात्रा में भी किया है।
नालंदा का संरचनात्मक वैभव
नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर वास्तु कला और कला का अद्भुत उदाहरण था। यहांके मठ,ध्यान कक्ष,पुस्तकालय और भव्य स्तूप इसकी महंत के प्रमाण है महानता के प्रमाण हैं।
नालंदा का पतन
नालंदा विश्वविद्यालय
12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को ध्वस्त कर दिया। इसके पुस्तकालय को जलाने में महीना लग गए क्योंकि इसमें लाखों किताबें थी। यह आक्रमण न केवल नालंदा के लिए बल्कि भारत की शैक्षणिक विरासत के लिए भी एक बड़ी क्षतिथी।
आधुनिक पुनर्जन्म

21वीं सदी में नालंदा विश्वविद्यालय को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया गया। वर्ष 2010 में नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की योजना को भारत सरकार ने मंजूरी थी। इस वैश्विक विश्वविद्यालय के रूप में विरासत करने के लिए कई देशों में सहयोग दिया। नालंदा विश्वविद्यालय का नया परिषद राजगीर,बिहार में स्थित है। यहां आधुनिक शिक्षा प्रणाली और प्राचीन ज्ञान पर जो दिया जाता है।
नालंदा नालंदा की वैश्विक पहचान
नालंदा विश्वविद्यालय
नालंदा विश्वविद्यालय न केवल भारतीय सभ्यता का गौरव है, बल्कि यह वैश्विक शिक्षा का प्रतीक है। इसकी विरासत में दुनिया को दिखाया कि ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती। यहां परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
परिणाम
नालंदा विश्वविद्यालय केवल ईट और पत्थरों की संरचना नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति ज्ञान और विज्ञान की अनमोल धरोहर है। प्राचीन नालंदा का पुनर्जागरण यह संदेश देता है कि शिक्षा और ज्ञान हमारे जीवन का मूल आधारहै। नालंदा की गाथा हमें अपने इतिहास पर गर्व करने के लिए प्रेरित करती है और इसे सहेजने और आगे बढ़ने का संकल्प ही देतीहै।
भारत और विश्व के लिए नालंदा एक ऐसा स्मरण है जो सदैव ज्ञान शांति और समृद्ध का संदेश देता रहेगा।